श्रीनाथ राघवन कार्नेगी इंडिया में एक नॉन-रेसिडेंट सीनियर फेलो हैं। वो अशोका यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस एंड हिस्ट्री के प्रोफेसर भी हैं। उनके शोध का मुख्य फोकस भारत की विदेश और सुरक्षा नीतियों के समकालीन और ऐतिहासिक पहलुओं पर है।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों, रणनीतिक अध्ययन और आधुनिक दक्षिण एशियाई इतिहास पर कई किताबें लिखी हैं। वो वॉर एंड पीस इन मॉडर्न इंडिया: ए स्ट्रैटेजिक हिस्ट्री ऑफ द नेहरू ईयर्स (2010), और 1971: ए ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ द क्रिएशन ऑफ बांग्लादेश (2013) के लेखक हैं, और नॉन-एलाइनमेंट 2.0: ए फॉरेन एंड स्ट्रैटेजिक पॉलिसी फॉर इंडिया इन द ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी (2013), इंडियाज़ वॉर: द मेकिंग ऑफ मॉडर्न साउथ एशिया, 1939 - 45 (2016), और, थोड़े समय पहले, द मोस्ट डेंजरस प्लेस: ए हिस्ट्री ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स इन साउथ एशिया (2018) के सह-लेखक हैं।
कई उल्लेखनीय किताबें लिखने के अलावा, उन्होंने इंपीरियलिस्ट्स, नेशनलिस्ट्स, डेमोक्रेट्स: द कलेक्टेड एसेज़ ऑफ सर्वपल्ली गोपाल (2013) का संपादन और द ऑक्सफोर्ड हैंडबुक ऑफ इंडियन फॉरेन पॉलिसी (2015) का सह-संपादन (डेविड मेलोन और सी. राजा मोहन के साथ) भी किया है।
उनके लेख जर्नल ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज़, एशियन अफेयर्स, और इंडिया रिव्यू जैसे जर्नलों के अलावा कई अन्य अकादमिक और नीति-केंद्रित जर्नलों में भी प्रकाशित हुए हैं। वो मीडिया में नियमित तौर पर टिप्पणीकार के तौर पर दिखते हैं, और फिलहाल द प्रिंट के लिए लिखते हैं। उनके लेख प्रमुख भारतीय प्रकाशनों में छपे हैं।
उन्हें 2011 में स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ में उत्कृष्ट योगदान के लिए के. सुब्रमण्यम पुरस्कार और 2015 में प्रतिष्ठित इंफोसिस पुरस्कार (सामाजिक विज्ञान) से सम्मानित किया गया था।
इससे पहले, वो नई दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो थे। वो किंग्स कॉलेज लंदन में इंडिया इंस्टीट्यूट में एक सीनियर रिसर्च फेलो भी थे और उन्होंने किंग्स कॉलेज लंदन में डिफेंस स्टडीज़ डिपार्टमेंट में पढ़ाया है। वो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य रहे हैं। वो भारतीय रक्षा मंत्रालय के लिए कारगिल युद्ध इतिहास के मुख्य संपादक थे। शिक्षा जगत में प्रवेश करने से पहले, उन्होंने भारतीय सेना में एक इन्फैन्ट्री ऑफिसर के रूप में छह साल बिताए।